Friday 8 December 2017

उस फकीर ने कहा था कि ‘तुम अपने औलिया खुद ही हो यहाँ कुछ मत मांगा करो।’

बंजारा डेरे से निकलकर बाहर बकरियों के बाड़े में आकर बैठ गया। आसमान की और देखकर उसने कहा ‘कितनी ठारी पड़ रही है’ और खुद को बरड़ी में लपेट लिया। बाड़ के बाहर हाथ तपने को लकड़ियाँ जला ली और चिलम में खीरे भरने लगा। बाड़ से पीठ टिकाए उसने सिर ऊपर करके किरतियों को देखा और भीतर से उठी गहरी उसांस चिलम के धूएं में मिलकर जाळों में खो गई। आगळ के पास ऊंघती बकरी के सिर पर हाथ फेरकर उसने पूछा ‘तुमने कभी किसी की जान ली है क्या?’ उसे लगा बकरी फुसफुसाकर कह रही है ‘हाँ शाम में ही तो खेत में अभी-अभी उग आए चने के पौधों की जान ली थी।’ उसे याद आया किसान का गुस्से भरा चेहरा देखकर वो हंस पड़ा था।

बरसों पहले के काळ के दिन जैसे धुएं में आकार लेकर बाड़ पर मंडने लगे थे। वो जिनावरों के साथ डेरे छोड़कर परदेश चले गए थे। कितना दुख देखा देखा था सड़कों के किनारों पर उसने। बारिश की खबर मिलते ही वो अपने मुलक भाग आए थे। कितनी रातों तक वो डरावने सपने देखता रहा जैसे उसके प्रेम से गुस्सा हुए लोग उसके पीछे कुदालियाँ लेकर भाग रहे हों।

बाड़े पर से उड़ते हुए चमगादड़ को अंधेरे में खोते हुए देखने लगा वो। वो सोचने लगा कि क्या उसने सच में प्रेम किया था कभी। वो बंजारन उसे याद आई जो छाछ लेने आया करती थी दोपहरों में। उसने डेरे के कोने पर छप गए गहरे निशान देखने की कोशिश की। अलग होते हुए उस बंजारन के कहा कि अब तुम्हारे मूच्छें उग रही हैं और दोनों हंसते रहे थे छिपकर। बंजारा अपनी मूच्छों और दाढ़ी पर हाथ फेरकर खींप की छोटी-छोटी लकड़ियों के अलाव में फेंकता रहा। लकड़ियाँ आग छूते ही खत्म हो जाती। वो बंजारन घुमक्कड़ बंजारों के डेरे से आती थी और किस्से बांचती थी गांवों के। काळ के दिनों में यहीं छोड़कर परदेश गया था और काळ बिताकर लौटने के बाद वो सालों तक बाट जोहता रहा इस जगह उसकी।

वापिस डेरे में जाकर खाट पर ऊंघने की कोशिश करते हुए वो सोचने लगा कि उसके पास सबके लिए शुभकामनाएँ क्यों हैं हजार चुप्पियों के बाद भी। कितनी बार सोचा है उसने कि वो अब बद्ददुआएं देगा लेकिन उसे धोरे के उस पार के पीर बाबा याद आ गए, उस फकीर ने कहा था कि ‘तुम अपने औलिया खुद ही हो यहाँ कुछ मत मांगा करो।’ उसे अपना वादा याद हो आया। पेड़ की टहनी पर उसने बरड़ी का लाल धागा बांधा था कि मन्नत पूरी हुई तो वो शहर जाकर कव्वाली सुनेगा और लौटकर सबको खीर खिलाएगा।

वो अब भी सोच रहा है कि उस शहर के कमरे में अकेलेपन से भागती वो आत्मा इस सर्दी में उस छोटी पहाड़ी या छत पर कैसे जाती होगी...


No comments:

Post a Comment